Sunday, September 13, 2009

देखा जो नज़र उठाके....

देखा जब भी नज़र उठाके , खाली जगह ही मिली हमें
फिर कभी नज़र उठाया ही नही , खालीपन के डर से
शायद तुम बैठे थे किसी सूनसान कोने में , जहाँ मेरी नज़र पहूच ही न सकी
कभी सोचा है की शायद तुम थे बेखबर मुझसे , क्या इतने बुरे थे हम ?

जमाने की बातों में तो तुम भी उलझे थे कभी , तो आज मुझपे क्यूँ है यह बंदिश,
ज़िन्दगी में कुछ भी नही है आसान ,इतनी ख़बर हो गई है हमे,
ख़ुद से जो अगर तुम पूछो , हम तुम्हारे कभी थे ही नही!

तेरी आंखों का जादू कब से है मुझपर ,पुरी दुनिया की किसे पड़ी है
पर तेरी आंखों ने सिर्फ़ दुनिया की भीड़ को निहारा है , मेरी नज़रो को नही
इस भीड़ में सबसे पीछे हम थे खड़े, जाने की आस में...

महफिले आई और गई, सब को शम्मा मिली , पर हमे तन्हाई,
लोग भी आए और गए, और हम दोनों भीड़ में खो गए,
पर तुम तो आज आए हो, दिल में हो कब से बसे
न मैंने कभी यह जाना , न तुमने कभी जताया

मुस्कुराके न सही पर बात तो छेरी होती, टालने की शामत ही फिर कहाँ आती,
अब के जो मिलेंगे नही कहेंगे कितने बुरे हो तुम!

तेरी आंखों का जादू कब से है मुझपर ,पुरी दुनिया की किसे पड़ी है
पर तेरी आंखों ने सिर्फ़ दुनिया की भीड़ को निहारा है , मेरी नज़रो को नही
इस भीड़ में सबसे पीछे हम थे खड़े, जाने की आस में...

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