मुझे तुम्हारे साथ एकाकीपन की चाह है --- अपनी निजी अवधि की खोंज में हूँ मैं ,
तुमसे जुड़े ख्वाबोँ के रंग अभी कच्चे सही, उस अधूरी सतरंगी छवि पर न्यौछावर हूँ मैं ,
तुम्हारे प्यार में अपने नयेपन की चाह है !
रौशनी में , वीराने में --- मुझे तुम्हारे साथ एकाकीपन की चाह है।
यह काया जैसे है कोई झरोखा , उसपर है सारा आकाश --- सपनों की यात्रा और उनका आकार परिवर्तन ,
उसी में आंधी का एक दौर , बारिश में डूब जाना --- सपनों का अंत एवम हीम शीतल अनुभूति ,
तुम्हारे प्रेम के उष्ण आवेश से कृत कृत हूँ मैं , मुझे अपने स्व में भिन्नता की चाह है!
मुझे तुम्हारे स्पर्श सहित एकाकीपन की चाह है, मुझे तुम्हारे साथ एकाकीपन की चाह है।
काले घने मेघ में छिप गया है चाँद , हवा के झोंके से बिखर गई है चांदनी --- जीवन के उतार चढ़ाव जैसे छाया-प्रकाश की लूकाछिपी ,
फिर कहीं से धुप का आना , और हमें अपने सुन्हरें आवरण से आच्छादित कर देना,
उसी माया के आकर्षण से , उसी स्पर्श के एहसास से
मुझे तुममे अपने भिन्नता की चाह है!
मुझे तुम्हारे स्पर्श सहित एकाकीपन की चाह है, मुझे तुम्हारे साथ एकाकीपन की चाह है।
Wednesday, September 16, 2009
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment